शिक्षा के दो ही मूल उद्देश्य होते हैं –

१. संस्कार

२. रोजगार

वर्तमान शिक्षा प्रणाली से इन दोनो ही उद्देश्यों की पूर्ति होती नहीं दिखती. देश में बढ़ते हुए अपराध और बेरोजगारी इसके ताजा उदाहरण हैं. इसलिए जिस शिक्षा  से यह दोनो उद्देश्य पूरे ना होते हों, उसे बदल देना चाहिए. इस सम्बन्ध में ब्रह्मास्त्र द्वारा कुछ उपाय व्यक्त किए गए हैं जो कि निम्नलिखित हैं:

 

  • प्राइमरी शिक्षा का प्रारूप ऐसा होना चाहिए जिससे बच्चे संस्कारी,  ज्ञानी व स्वस्थ बनें, इसीलिए उनको प्राइमरी शिक्षा  के रूप में अध्यात्म, योग एवं आयुर्वेद के साथ सभी विषयों की सामान्य शिक्षा  देनी चाहिए. प्राइमरी शिक्षा  के बाद बच्चों को वो ही पढ़ाना चाहिए जिसमें रूचि हो एवं वह विषय उसको रोजगार दे सके, एसा करने से वह छात्र व छात्रा अपने परिवार, समाज व देश के विकास के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है.

 

  • पीरियड प्रणाली खत्म करके एक समय में एक विषय ही पढ़ाया जाना चाहिए. जिससे छात्र एकाग्रता के साथ उस विषय  का अध्ययन  कर सकें तथा जब तक वह पूर्ण रूप से उस विषय  में निपुण  न हो जाए, तब तक उसे दूसरा विषय  नही पढ़ाया जाय.

 

  • मोनिटोरियल सिस्टम लागू करना चाहिए. जैसे शिक्षक द्वारा  पढ़ाए गए किसी विषय जिसमें विधार्थी निपुण हो चुका है, वह विधार्थी अन्य विधार्थीयों को उस विषय  को पढ़ाए. ऐसा  करने से वह विधार्थी उस विषय  में पूर्ण रूप से पारंगत हो जाएगा. यह प्रकिया सभी छात्रों के साथ दोहरानी चाहिए. ऐसा करने से स्कूलों के अंदर अध्यापकों की कमी की भी पूर्ती की जा सकती है साथ ही सरकार का भी बहुत सारा धन भी बचाया जा सकता है जो अन्य क्षेत्रों में का आएगा.

 

  • डी. बी. मैकॉले के द्वारा विकसित वर्तमान कॉन्वेंट शिक्षा पध्दति भारत को पूर्ण रूप से गुलाम बनाने के लिए लागू की गई थी, जिसका जि़क्र उसने ०२.०२.१८३२  को ब्रिटिश पार्लियामैंट में करते हुए कहा था कि भारत अपनी शिक्षा  पध्दति की वजह से ही विश्व गुरू एवं सोने की चिड़िया कहलाता है. अतः मैकाले निर्मित इस कॉन्वेंट शिक्षा  प्रणाली को खत्म करके पूर्णतः भारतीय शिक्षा  प्रणाली को लागू किया जाए तथा अधिकतर विषयों को हिन्दी में पढ़ाया  जाना चाहिए तथा संस्कृत को अनिवार्य करना चाहिए.

 

  • प्राईवेट एवं सरकारी स्कूलों का सैलेबस एक समान होना चाहिए.